मुझे कुछ कहना है: घोटाले पर सत्याग्रह
योग गुरू बाबा रामदेव ने कहा है कि वह 4 जून से दिल्ली में भ्रष्टाचार के खिलाफ सत्याग्रह करेंगे और उनका सत्याग्रह आंदोलन तब तक तक जारी रहेगा, जब तक सरकार उनकी शर्तों को न मान ले। बाबा ने 400 करोड़ रुपये वापस लाने की मांग की है। उनका कहना है कि भारत का 400 करोड़ धन विदेशी बैंको में जमा है।
भारत की 1 करोड़ जनता उनके समर्थन में है, उनमें हिन्दू, मुस्लिम, एनआरआई और अन्य वर्ग भी शामिल हैं। उनका उदेश्य स्वदेशी से स्वावलंबी भारत का निर्माण करना है। आज़ादी के 62 वर्षों के बाद भी हम भारतवासी विदेशी भाषा, विदेशी भूषा, विदेशी भोजन, विदेशी भाव, विदेशी दवाएं और विदेशी वस्तुओं का भरपूर उपयोग कर रहे हैं। इसके कारण देश का लाखों करोड़ों रूपया भारत से बाहर जा रहा है। पूरे देश में स्वदेशी का आग्रह भारतीय नागरिकों में पैदा हो इसके लिए आंदोलन करने की जरूरत है। अपने आत्म सम्मान को स्वदेशी के द्वारा ही पुनः जीवित किया जा सकता है।
अंग्रेजों के आने के पहले भारत के सभी गांव पूर्णरूप से स्वावलंबी थे। अंग्रेजों ने कई कानून बनाकर भारत की ग्रामीण कृषि व्यवस्था, ग्रामीण अर्थव्यवस्था, ग्रामीण कारीगरी आदि को खत्म कर दिया। भारत की खेती अब विदेशी ज्ञान और तकनीकी पर आधारित हो गई है। 1984 में किए गए एक अध्ययन के अनुसार, भारत देश में विकास के ऊपर होने वाले खर्च का मात्र 15 प्रतिशत ही किसी गरीब तक पहुंचता है। इसका अर्थ है कि भारत में 85 प्रतिशत धन भ्रष्टाचार में समाप्त हो जाता है। इसके कारण ही भारत में गरीबी और बेरोज़गारी अपने चरम पर है। भारत के 84 करोड़ लोग प्रतिदिन 20 रूपये से कम पर अपना जीवन घसीट रहे हैं।
स्विस बैंकों के असोसिएशन के अनुसार, भारत का लगभग 72 लाख 80 हजार करोड़ रुपया स्विस बैंकों में जमा है। इसके अतिरिक्त दुनिया के अन्य कई देशों में भी भारत का काला धन बिना किसी उपयोग के पड़ा हुआ है। इस धन को भारत में ला कर विकास कार्य तेजी से किया जा सकता है। इस भ्रष्टाचार के भस्मासुर को आज नहीं तो कल खत्म करना ही होगा।
भारत की 1 करोड़ जनता उनके समर्थन में है, उनमें हिन्दू, मुस्लिम, एनआरआई और अन्य वर्ग भी शामिल हैं। उनका उदेश्य स्वदेशी से स्वावलंबी भारत का निर्माण करना है। आज़ादी के 62 वर्षों के बाद भी हम भारतवासी विदेशी भाषा, विदेशी भूषा, विदेशी भोजन, विदेशी भाव, विदेशी दवाएं और विदेशी वस्तुओं का भरपूर उपयोग कर रहे हैं। इसके कारण देश का लाखों करोड़ों रूपया भारत से बाहर जा रहा है। पूरे देश में स्वदेशी का आग्रह भारतीय नागरिकों में पैदा हो इसके लिए आंदोलन करने की जरूरत है। अपने आत्म सम्मान को स्वदेशी के द्वारा ही पुनः जीवित किया जा सकता है।
अंग्रेजों के आने के पहले भारत के सभी गांव पूर्णरूप से स्वावलंबी थे। अंग्रेजों ने कई कानून बनाकर भारत की ग्रामीण कृषि व्यवस्था, ग्रामीण अर्थव्यवस्था, ग्रामीण कारीगरी आदि को खत्म कर दिया। भारत की खेती अब विदेशी ज्ञान और तकनीकी पर आधारित हो गई है। 1984 में किए गए एक अध्ययन के अनुसार, भारत देश में विकास के ऊपर होने वाले खर्च का मात्र 15 प्रतिशत ही किसी गरीब तक पहुंचता है। इसका अर्थ है कि भारत में 85 प्रतिशत धन भ्रष्टाचार में समाप्त हो जाता है। इसके कारण ही भारत में गरीबी और बेरोज़गारी अपने चरम पर है। भारत के 84 करोड़ लोग प्रतिदिन 20 रूपये से कम पर अपना जीवन घसीट रहे हैं।
स्विस बैंकों के असोसिएशन के अनुसार, भारत का लगभग 72 लाख 80 हजार करोड़ रुपया स्विस बैंकों में जमा है। इसके अतिरिक्त दुनिया के अन्य कई देशों में भी भारत का काला धन बिना किसी उपयोग के पड़ा हुआ है। इस धन को भारत में ला कर विकास कार्य तेजी से किया जा सकता है। इस भ्रष्टाचार के भस्मासुर को आज नहीं तो कल खत्म करना ही होगा।
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