कमजोर प्रधानमन्त्री के हाथ में देश का भविष्य


कांग्रेस भले ही अपने प्रधानमंत्री कि पीठ ठोकती नजर आये लेकिन जन मानस का क्या ,वो क्या सोचती है उस जनता कि बात नहीं कर रही हूँ जिसे सिर्फ अपना पेट पालना है --वो लोग क्या सोचेंगे उन्हें तो सिर्फ वोट देना है वो तो अपनी गरीबी के आगे लाचार हैं सरकार के खिलाफ आवाज भी नहीं उठा सकते किउकी जो सरकारी मदद मिल रही है उससे भी वंचित हो जायेंगे .यह गरीब जनता जो किसी तरह अपना जीवन यापन कर रही है कोई भी विचार करने कि स्थिति में कहाँ है? क्या सरकार के विरुद्ध खड़े हो सकते हैं यह लोग? नहीं ना .

इसी ग़रीब जनता से कांग्रेस को वोट मिलती हैं यह सरकार भी चाहती है कि वो ग़रीब बने रहे ताकि उनका वोट बैंक मजबूत रहे और ग़रीब तो बिचारा मजबूर है ही उसको तो इसी हाल में रहने में फायदा है वरना पेट भरना भी मुश्किल हो जायेगा .नेता जानते हैं कि जनता दो तरीके से गरीब है एक सोचने का मद्दा नहीं है इसलिये दिमाग से गरीब है दूसरे इतना पैसा नहीं है कि आराम से

खा पी सकें और सुकून से जीवन बिता सकें यानी पैसे और धन से भी गरीब हैं ।

फिर क्यों न इस देश के नेता इस कमजोरी का फायदा उठायें और जनता को हर जगह उल्लू बनायें ?.यह हाल है हमारे देश कि जनता का .

प्रधानमंत्री तो अपनी मजबूरी का वास्ता दे देते हैं उनकी मजबूरी आज उनकी ताक़त बनी हुई है बहुत आसान सा रास्ता है कह देना कि हम तो मजबूर हैं अब मंत्री या कर्मचारी कुछ गड़बड़ कर रहे हैं तो प्रधानमंत्री क्या करें .


देश कि अर्थव्यवस्था की बात करें तो मनमोहन सिंह जी से ज्यादा कौन समझ सकता है महंगाई पे कोई लगाम नही है उसे कन्ट्रोल करने के लिए ब्याज दरें बदा दी जाती हैं .चुनाव आने से पहले वादे किए जाते हैं पर निभाए नही जाते .पिछड़ों को आगे लाने की बात की जाती है और आरक्षण के नाम पर वोटो का दम भरते हैं .
आधुनिक युग के रावण और दुशासन हैं यह लोग .फिर भी सारी जनता पर शासन करते हैं .हर दिन बोफोर्स व् चारा घोटाला सामने आते हैं फिर भी अखबारों में इनका बोलबाला है .विकास के नाम पर धोका दिया जा रहा है विश्वास ,एकता जैसे शब्द कहाँ रह गए हैं अब.
.राजनीति अगर किसी दबाव में रहकर सम्पन्न की जाती है, तो फिर राज नीति मे स्वतन्त्रता कहां रह गयी ? यह तो प्रेशर पालिटिक्स हो गयी .धन बल पर आश्रित राजनीति धन के दबाव की राज्नीति है / मसल पावर की राज्नीति गुन्डागर्दी और मार काट के भय की राज नीति है, दहशत की राज्नीति है / दोनो ही प्रकार अनुचित और बेजा दबाव बनाते है / यह सब किसके फायदेके लिये किया जाता है ? यह आदर्श राज नीति कहां रह गयी ?

इस तरह कि राजनीति अशुभ है देश और जनता दोनों के लिए .आनेवाले दिनों में पन्चायत से लेकर लोक सभा तक यही दोनो वर्ग यानी “धन बल” और “बाहु बल” का वर्चस्व बढेगा और इसे कोई नहीं रोक पायेगा .तो अब जनता को ही


उठना होगा एक जुट होकर अपने हृदय में साहस भरना होगा तभी यह राक्षस ख़त्म होंगे अन्यथा कितने ही बेक़सूर निरीह मारे जायेंगे ]



जयति गोयल

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